4.3.23

रूस-यूक्रेन युद्ध के रणनीतिक सारांश

 





लेखक : अशोक कुमार सिंह 



ISBN 978-93-91984-27-4 

Price: Rs. 320.00

pp.: 160 


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डॉ. अशोक कुमार सिंह रक्षा एवं सुरक्षा अध्ययन में देश के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। पिछले चार दशक से उनकी लिखी पुस्तकें भारतीय  विश्वविद्यालयों में संदर्भ ग्रंथ के रूप में सम्मिलित हैं। डॉ. सिंह की 50 पुस्तकें सैन्य इतिहास, निरस्त्रीकरण, विश्व शांति, भू रणनीति, भू अर्थशास्त्र, प्रतिरक्षा एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, सैन्य चिन्तन, हिन्द महासागर, सैन्य मनोविज्ञान तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विविध आयामों पर प्रकाशित हो चुकी है।

डॉ. सिंह की पुस्तकों का प्राक्कथन भारत के पूर्व थल सेनाध्यक्ष सहित रक्षा अध्ययन के भीष्म पितामह माने जाने वाले श्रद्धेय आर.सी. कुलश्रेष्ठ, डी.डी. खन्ना, एन.वी. बल तथा यू.सी. पंत द्वारा लिखा जा चुका है।

हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय (उत्तराखण्ड), महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय (हरियाणा), हरियाणा उच्चतर शिक्षा सेवा श्रेणी-1 सहित सिंघानिया विश्वविद्यालय (राजस्थान) में शिक्षण, शोध एवं प्रशासनिक पदों का एक लम्बा अनुभव।

सम्प्रति डॉ. सिंह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सहित भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं राज्यों की लोक सेवा आयोग में विषय विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवायें दे रहे हैं।

 

विषय सूची

ब्लादिमीर जेलेंस्की—जीवन और दर्शन


ब्लादिमीर पुतिन : जीवन वृत्त


इतिहास, राजनीति और भू-रणनीति में यूक्रेन


शस्त्रास्त्रों का वैश्विक खेल


वैश्विक संस्थाओं की ढहती विश्वसनीयता

जंग का नया मॉडल-परिकल्पना और परिणाम

भारत की भूमिका, पाकिस्तान का मंसूबा और स्विफ्ट का दांव

युद्ध की डायरी

रूस-यूक्रेन युद्ध की रणनीतिक मीमांसा—एक सिंहावलोकन


इसी पुस्तक से .. 

यह यूक्रेन में युद्ध का मैदान ही है जो इस दुनिया में भविष्य के नियम, विजन और भू-रणनीति का रोड मैप तैयार कर रहा है। 


रूस-यूक्रेन जंग के शुरुआती दौर में यह कल्पना की गयी थी कि यह जंग द्वितीय विश्व युद्ध की भाँति लड़ी जायेगी जिसमें एक पक्ष, दूसरे पक्ष पर तूफान की भाँति हावी हो जायेगा, लेकिन हुआ क्या? यह जंग प्रथम विश्व युद्ध की भाँति एक ऐसे दौर में प्रविष्ट कर गयी है जिसके निर्णायक परिणाम में रणनीतिक दृष्टि से कोई विजयी होता नहीं दिख रहा है।


पुतिन को विश्वास था कि यूक्रेन उनकी मजबूत सेना के आगे हथियार डाल देगा, उन्हें यह गलतफहमी भी थी कि कोई उसके वैश्विक सैन्य दबदबे और चीन से बढ़ते हनीमून के कारण यूक्रेन के साथ खड़ा नहीं होगा, लेकिन उनके सारे मंसूबे धरे के धरे रह गये। इसी गलत आँकलन के कारण यह संघर्ष एक ऐसे अन्तहीन युद्ध में तब्दील हो गया है जिसने विश्व व्यवस्था की दिशा ही बदल दी है।


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