(नवगीत-संग्रह)
ISBN 978-93-91984-75-5
Price: Rs. 250.00
pp.: 112
साहित्य-जगत में डॉ अवनीश सिंह चौहान एक प्रतिष्ठित नवगीतकार हैं। वे हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं के प्रख्यात लेखक और इन दोनों भाषाओं की आभासी दुनिया और प्रिंट मीडिया के जागरूक संपादक हैं। डॉ अवनीश सिंह चौहान आभासी दुनिया में नवगीत की स्थापना करने वाले उन्नायकों में अग्रपांत रहे हैं। यद्यपि आपका नवगीतीय अवदान बहुत अधिक नहीं है, किंतु जो है उसकी सुगंध देश की सीमाओं से बाहर निकलकर वैश्विक हो गई है — विश्व स्तर पर आपके हिन्दी और अंग्रेजी भाषी पाठकों की संख्या लाखों में है।
'अकेला होना' और 'अकेले चलना' दो अलग-अलग स्थितियाँ हैं। 'अकेला होना' मनुष्य की बाध्यता या विकलता का सूचक हो सकता है, जबकि 'अकेला चलना' मनुष्य का चुनाव है। 'अकेला चलना' एक कला है— भोगी के लिए भी और योगी के लिए भी। लौकिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए मनुष्य को अकेले ही अपने कर्तव्यपथ पर चलना होता हैं, क्योंकि कर्तव्य ही उसे आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करता है और विषम परिस्थिति आने पर पथविचलित होने से उसकी रक्षा करता है— "कर्तव्येन कर्ताभि रक्षयते" (महाभारत, भीष्म पर्व, 58.27)। 'एक अकेला पहिया' की रचनाएँ मनुष्य की इसी लौकिक और आध्यात्मिक यात्रा का वृतांत रचने का एक लघु प्रयास हैं।
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